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नारी का विद्रोह

कविता,नारी का विद्रोह:
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-तुम क्या तलाक दोगे मुझको,जाओ मैंने तुम्हें तलाक़ दिया,
तोड़ कर निकाह के बन्धन सारे जाओ मैंने तुम्हें आज़ाद किया।

निकाह एक समझौता समझते हो,मैंने समझौता तोड़ दिया,
मालती,शाज़ो जो भी कोई हैं अब सबसे नाता जोड़ दिया।

तुम बहुविबाह के पक्षधर हो मैं इसकी प्रबल विरोधी हूं,
क्या  बहुविबाह की मान्यता नारी की भी तुम स्वीकारी हो।

यदि नहीं तो धर राखों अपना मज़हब,अपने हदीस  अपना कुरान,
जो नर-नारी को समान ही न समझे,हम पाबन्द नहीं तुम्हारा  कुरान

तुम कहते हो जन्नत मां के क़दमो में पर नारी को क़दमों मे रखते हो,
यह अनुचित व्यबहार नारी के प्रति तुम कैंसे सहने पाते हो।

तुम्हरे अनुमोदन में नारी के प्रति असम्मान भावना दिखती है,
क्या सम्मान करोगे तुम बस तुम्हारे हृदय वासना रहती है।

समझ लो तुम मेरे प्रियतम नारी अब जागृत होती है,
अपने अधिकारों के प्रति नारी के हृदय क्रांति उपजाती है।

मैंने तो तलाक दिया तुमको,कितने भी निकाह अब करलो तुम,
मैं भी  हिन्दू बन जाऊंगी,टक टक देखा करना तुम ।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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3 Comments

Babita patel

30-Sep-2023 06:52 AM

v nice

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RISHITA

29-Sep-2023 01:01 PM

Very nice

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Gunjan Kamal

29-Sep-2023 12:42 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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